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National News: दिल्ली विधानसभा चुनाव : फ्रीबीज अर्थव्यवस्था के लिए खतरा या मजबूरी

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नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी दल पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। इन चुनावों में आप, बीजेपी और कांग्रेस तीनों ही मुफ़्त की कई योजनाओं के जरिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में लगी है। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग होनी है। इन चुनावों में दिल्ली की सत्ता को बचाए रखना आम आदमी पार्टी के लिए बेहद अहम है। वहीं तीन दशकों से राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए बीजेपी भी संघर्ष कर रही है।

जबकि कांग्रेस पार्टी भी दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को दोबारा हासिल करने की कोशिश में है और इन तीनों ही प्रमुख दलों के लिए लोकलुभावन वादे चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा बनते दिख रहे हैं। सवाल है कि दिल्ली के वोटरों के सामने किए जा रहे इन बड़े-बड़े वादों को पूरा करने के लिए राज्य के पास कितना बजट है और क्या ऐसे मुफ्त की सुविधाओं से जुड़े वादे पूरे किए जा सकते हैं? भारत में कल्याणकारी योजनाएं पुराने समय से चलाई जा रही हैं। देश के कई इलाकों में फैली गरीबी और लोगों की जरूरत के लिए इसे काफी जरूरी भी माना गया है। ऐसी योजनाओं में गरीबों के लिए राशन, पीने का स्वच्छ पानी, बेसहारा, विधवा और बुजुर्गों के लिए पेंशन, गरीबों के लिए चिकित्सा सुविधा जैसी कई योजनाएं शामिल हैं। टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, अगर मुफ्त की कही जानी वाली इन रेवड़ियों से वोट मिलता है तो इसका सीधा मतलब है कि देश में वो गरीबी मौजूद है जो लोगों को दु:ख देती है। उनका कहना है, आजकल छोटे शहरों और कस्बों में भी आपको चमकते बाजार दिख जाते हैं और उसके पीछे यह गरीबी दब जाती है। सरकार इस गरीबी को स्वीकार करने से इनकार करती है, लेकिन उसे पता है कि इसपर ध्यान नहीं दिया तो लोगों का गुस्सा फूट सकता है, इसलिए लोगों के खातों में पैसे ट्रांसफर किए जा रहे हैं। चाहे वो किसान सम्मान योजना हो, महिलाओं को पैसे देने हों या लाडली बहन जैसी योजना हो। इसका नुकसान यह हो रहा है कि सरकार रोजगार और दूरगामी योजनाओं जैसी चीजों में निवेश नहीं कर रही है।

ऐसी योजनाएं धीरे-धीरे देश के अन्य राज्यों में भी लागू की गईं, जिनमें बिहार में महिलाओं के लिए साइकिल योजना और दिल्ली में 200 यूनिट तक फ्री बिजली की योजना भी शामिल है। इसके अलावा केंद्र सरकार भी कई ऐसी योजनाएं चलाती हैं, जिसके तहत लोगों को मुफ्त में राशन या किसानों को किसान सम्मान निधि देना शामिल है। आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं, मुफ्त की इन योजनाओं का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि लोग आज के छोटे फायदे के लिए कल का बड़ा नुकसान कर रहे हैं। पहले आने वाली दो-तीन पीढ़ियों को ध्यान में रखकर योजना बनती थी, अब ऐसा नहीं हो रहा है। अगर दिल्ली की बात करें तो मुफ्त की योजनाओं की वजह से पहली बार दिल्ली का बजट नुकसान में जा सकता है, जो हमेशा सरप्लस रहता था। हमारा अनुमान है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक दिल्ली का बजट 6 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का होगा।

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लेखक के बारें में....

Ashok Bishnoi

अशोक नए नवेले ट्रेनी पत्रकार है. वे राजस्थान ई खबर के लिए कंटेंट राईटर की पोस्ट पर काम कर रहे है.

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