जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर प्रदेश के अनेक गांवों में परिवारों की आर्थिक आत्मनिर्भरता का आधार महिलाएं हैं। यहां चर्चा हम मासिंघका बास की कर रहे हैं। विराटनगर तहसील मुख्यालय से चार किलोमीटर की दूरी पर। मांसिंघका बास में ऐसे तीस से अधिक उदाहरण हैं जहां महिलाओं ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया बल्कि अपने पति और बच्चों का कॅरियर भी बनाया। गांव में तीस से अधिक लूम्स जयपुर रग्स ने लगा रखी हैं। जहां एक सौ के करीब बुनकर महिलाएं जीवनयापन कर रही हैं और आर्टिजन से आर्टिस्ट बनने की ओर अग्रसर हैं।
पहली कहानी – यह कहानी है मंजू देवी की। पीहर है कैला का बास, माता-पिता मजदूरी करते थे। दो भाई और तीन बहनें थीं। परिवार गरीब था, पढ़ नहीं पाए। बस घर में भैंस बकरियां थी, वे चराई। हां, गांव में एक ठेकेदार के यहां गलीचे का काम था, वह धीरे-धीरे सीख लिया। सत्रह साल की उम्र में शादी हो गई, तब पति बारहवीं में पढ़ते थे। ससुराल में खेती-बाड़ी भी थी, लेकिन तीन बीघा जमीन ही थी, तो ज्यादा कुछ मिलता नहीं था। चूंकि गलीचा बनाने का काम सीखा हुआ था तो ससुराल में भी आकर शुरू किया।
जयपुर रग्स ने लूम लगाई, उस पर काम परवान चढ़ा और कमाई कर पति को सहयोग किया तो उन्होंने कॉलेज और आईटीआई भी की, प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लिया और अंततः दिल्ली पुलिस के लिए चुने गए। फिर बेटे की बारी आई, बेटे अनीस की मंशा आईआईटी करने की थी। मां ने कारपेट बुनाई से जो कमाया वह बेटे पर लगाया। सीकर तैयारी के लिए भेजा। बेटे ने मेहनत की और सलेक्ट हो गया।
दूसरी कहानी – मेवा देवी और उसकी बहू नीलम की है। दोनों सास-बहू गलीचे बुनाई का काम जयपुर रग्स की लूम पर करते हैं। इससे जो आमदनी होती है, उससे नीलम ने अपने पति की पढ़ाई पर खर्च किया और पति ने एसटीसी कर ली और अध्यापक बन गया। अब मेवा देवी अपने दूसरे बेटे को भी तैयारी करवा रही है। नीलम की एक बेटी कृतिका नवोदय विद्यालय पावटा में पढ़ रही है।
तीसरी कहानी- ऐसे ही कृष्णा देवी की कहानी है, उनका पीहर प्रतापगढ़ के नजदीक आगर गांव में है। पिताजी बकरी चराते थे, खुद पढ़ नहीं पाई। पांच बहनें थीं। पीहर में गलीचा बनाने का काम सीख लिया था। ससुराल आई तो पति सीआईएसएफ में थे, लेकिन कृष्णा के पास गलीचा बुनाई का हुनर था। जेठानी की लूम पर बैठकर काम शुरू किया। कहती हैं खुद नहीं पढ़ पाईं, लेकिन बेटी को पढ़ा रही हैं। बड़ी बेटी ने एमए बीएड कर लिया है और छोटी कॉलेज में है। कहती हैं लूम से जो मिलता है वह बेटियों का भविष्य बनाने में खर्च हो रहा है, इसका सकून है।