जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर आयुर्वेद की धरोहर कही जानी वाली प्राचीन पाण्डुलिपियाें का संरक्षण, डिजिटलाइजेशन, शोध एवं प्रकाशन कर जयपुर का जोरावर सिहं गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान मानद विश्वविद्यालय देश का पहला संस्थान बन गया है। जहां पर 100 साल से लेकर 500 साल पुराने आयुर्वेद ग्रंथ उपलब्ध हैं। जिनमें शारदा लिपी, देवनागरी, तुलू, प्राचीन कन्नड़, बंगाली, उड़िया, असमिया, मलयालम पाण्डुलिपियां उपलब्ध हैं। यहां पर 400 मूल और 1500 से ज्यादा स्कैन की हुई मनु स्क्रिप्ट उपलब्ध है। संस्थान के विभाग में न केवल खराब और गंदे कागज को सही किया जाता है, बल्कि स्कैनिंग की आधुनिक मशीनें है। जहां पर कागज को जांचने के लिए लैब और ट्रीटमेंट की सुविधा भी उपलब्ध है। केन्द्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने नोडल एजेन्सी घोषित किया है। देवनागरी में मनु स्क्रिप्ट (अर्क प्रकाश, अजीर्ण पाचन योग, रस रत्नाकर, रसेन्द्र कल्पद्रुम, राजनिघण्टु, रोग विनिश्चय, लोचन परीक्षा, वेदांतसार, वैद्य कोस्तुभ, वैद्य जीवन, वैद्य दर्पण, शत श्लोकी व्याख्या ) उपलब्ध है।
संग्रहालय की धरोहर में 100 से 500 साल पुरानी आयुर्वेदिक पाण्डुलिपियां
सुरक्षा- विभाग में आने वाली का संरक्षण का कार्य नियमानुसार किया जा रहा है। पन्नोंं में नमी होने पर उन्हें प्राकृतिक तरीके से अथवा विशेष तरह के केमिकल द्वारा दूर किया जाता है। पन्ने फट गए हों अथवा कीड़े लगने पर हस्तनिर्मित कागज को जोड़कर समान आकार दिया जाता है। रिकाॅर्ड – हरेक पाण्डुलिपियां का रिकाॅर्ड रखा जाता है और संरक्षित की जाने वाली को अंत में विशेष गत्ते को लगाकर उसे लाल रंग के सूती कपड़े में बांधा जाता है। जिससे पुन: उसमें नमी एवं कीड़े आदि ना लगे। यहां तक की बॉक्स में पूरी तरह सुरक्षित रखा जाता है।
ऑडियो-विजुवल म्यूजियम – संस्थान में आयुर्वेद इतिहास का ऑडियो-विजुवल म्यूजियम भी है। जहां पर दान करने वाले हर व्यक्ति का रिकाॅर्ड रखा जाता है और भविष्य में दान करने वाले का डिजिटलाइजेशन कर इन पर लेखक व दानदाता का नाम भी अंकित किया जाएगा। ट्रीटमेंट – पुराने पन्नों को सुरक्षित अथवा उन्हें संरक्षण केन्द्र पर लाकर उचित ट्रीटमेंट देकर ठीक करना एवं पुन: उन्हें वापस भी लौटाया जा रहा है। इनडोर वायु गुणवत्ता की मॉनिटरिंग और खतरनाक स्तरों की पहचान की जाती है।
ये है खास – पन्नों की जांच के लिए आधुनिक लैब एवं स्कैनिंग मशीन तक उपलब्ध है। मनु स्क्रिप्ट में दो साल की अवधि का एम.एससी कोर्स भी संचालित किया जा रहा है। म्यूजियम में भी अनेक तरह के आयुर्वेद से संबंधित ग्रथ है। शोध कार्य भी किया जा रहा है।
एक अमूल्य धरोहर
आयुर्वेद से संबंधित पाण्डुलिपियां एक अमूल्य धरोहर है। मानवता के हित में किसी के पास भी उपलब्ध होने पर संस्थान को दे सकते है। कागज का डिजिटलाइजेशन करके वापस मिल जाएगा। भविष्य में प्रकाशन होने पर क्रेडिट भी दिया जाएगा।”-डॉ.संजीव शर्मा, कुलपति, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान मानद विश्वविद्यालय