जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर कोर्ट ने इस मामले में महिला अभियुक्त करिश्मा को उम्रकैद व 61 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। कोर्ट के जज तिरुपति कुमार गुप्ता ने फैसले में यह भी कहा कि महिला होते हुए भी अभियुक्त ने पीड़िता का दर्द नहीं समझा और ना केवल बेटे के दुष्कर्म करने में सहयोग दिया, बल्कि उसे अनैतिक काम वेश्यावृत्ति के लिए बेचने का प्रयास भी किया। ऐसी महिला समाज की बगिया में उगे कैक्टस के समान है। दरअसल पीड़िता किशोरी की मां ने गलता गेट पुलिस थाने में 10 जुलाई, 2014 को पीड़िता के लापता की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें बाल अपचारी पर पीड़िता को बहला-फुसलाकर ले जाने का आरोप लगाया था। पुलिस ने बाल अपचारी के खिलाफ किशोर बोर्ड में चालान पेश किया। बोर्ड ने उसे तीन साल के लिए सुरक्षित स्थल, भीलवाड़ा भेजने का आदेश दिया।
जयपुर| जयपुर मेट्रो-प्रथम की पॉक्सो मामलों की विशेष कोर्ट-2 ने करीब 11 साल पुराने नाबालिग किशोरी से दुष्कर्म में सहयोग करने और अनैतिक काम के लिए उसे बेचने का प्रयास करने के मामले में पुलिस की ओर से दो महिलाओं को आरोपी नहीं मानने को गंभीर माना है। साथ ही इन दो महिलाओं नैना व सपना के खिलाफ संज्ञान लिया है। वहीं मामले में इन दो महिलाओं सहित अन्य दो आरोपी मंजू व बबलू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर, उन्हें तलब किया है।
कोर्ट के जज तिरुपति कुमार गुप्ता ने फैसले में कहा कि यह बड़ा हास्यास्पद है कि पुलिस अधिकारी कानून के विपरीत जाकर ऐसा कार्य कर लेते हैं। वे यह भूल गए कि जब पीड़िता ने रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद पुलिस को धारा 161 व मजिस्ट्रेट को धारा 164 के बयान दर्ज कराए थे तो उनमें खुद के अपहरण की वारदात में आरोपी संदीप सहित नैना व सपना की मिलीभगत भी बताई थी, लेकिन फिर भी इन दोनों के खिलाफ नकारात्मक नतीजा रिपोर्ट दी है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अग्रिम अनुसंधान का मतलब यह नहीं है कि पूर्व अनुसंधान पर पानी फेर दिया जाए या उसे नष्ट कर दिया जाए, बल्कि अग्रिम अनुसंधान का मतलब यह है कि उसमें कुछ जोड़ना या स्पष्ट करना है।