जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक जगद्गुरु रामानंदाचार्य की 727वीं जयंती मंगलवार को मनाई जाएगी। वैष्णव संप्रदायों में रामानंदाचार्य और उनके शिष्य महत्वपूर्ण हैं। रामानंद संप्रदाय के लिए जयपुर महत्वपूर्ण स्थल है।रामानंद संप्रदाय की काशी में स्थित आचार्य पीठ (श्रीमठ) को जब मुगल आक्रांताओं ने तोड़ डाला, तब आमेर की गलता गद्दी रामानंद संप्रदाय की मुख्य पीठ थी। जिस पर 16वीं सदी में काशी से आकर जगद्गुरु कृष्णदास पयहारी विराजमान हुए। उनके शिष्य अग्रदेवाचार्य ने रैवासा में रामानंदी मठ स्थापित किया। वैरागी साधुओं की सशस्त्र सेना भी चांदपोल के बालानंद मठ में बालानंदाचार्य महाराज ने बनाई थी। वर्तमान में जयपुर में रामानंद संप्रदाय के ही सर्वाधिक मठ व मंदिर हैं।
रामानंद संप्रदाय के प्रमुख मठ और स्थान
शाहपुरा स्थित त्रिवेणी धाम, तामड़िया धाम चाकसू व धुआंकलां टोंक, कनकबिहारी मंदिर गलता गेट, कौशल्यादासजी की बगीची बनीपार्क, हनुमान मंदिर रेलवे स्टेशन, सीतारामजी का मंदिर छोटी चौपड़, बंशीवाले बाबा की बगीची पुरानी बस्ती, पापड़ हनुमानजी विद्याधर नगर और सिद्धेश्वर हनुमान मंदिर स्वेज फार्म सहित 40 से अधिक स्थान रामानंद संप्रदाय के हैं। यहां भगवान सीतारामजी एवं हनुमानजी का विशिष्ट पूजन, रामायण पाठ और सीताराम नाम संकीर्तन होता है।
जयपुर में बने प्रदेश के एकमात्र संस्कृत विश्वविद्यालय का नाम भी 2007 में वसुंधरा राजे सरकार ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य के नाम पर कर दिया था। हालांकि विश्वविद्यालय ने रामानंदाचार्य को बिसरा दिया है और उनकी जयंती पर आज उनकी पूजा के अलावा कोई विशेष कार्यक्रम नहीं रखा गया है।
रामानंदाचार्य की शिष्य मंडली में कबीर, संत रैदास, पीपा और धन्ना जाट भी
धन्ना-पीठाधीश्वर बजरंगदास महाराज ने बताया कि रामानंदाचार्य की शिष्य मंडली में महात्मा कबीर, संत रैदास, धन्ना जाट, सैन नाई और महाराज पीपा भी थे। पद्मावती और सुरसरि नामक दो महिला संत भी उनके शिष्यों में थीं। उनके संप्रदाय में वर्ण और वर्ग का कोई भेद नहीं है। रामानंद दर्शन के विद्वान शास्त्री कोसलेंद्रदास ने बताया कि दादू, रामस्नेही, वारकरी, घीसा पंथ, कबीर पंथ और रैदास पंथ जैसी परंपराओं का मूल रामानंद संप्रदाय ही है। आवश्यक है कि सरकार और समाज उनके इतिहास और दर्शन पर ध्यान दें, जिससे सामाजिक समरसता का उत्तम वातावरण बन सके।