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Rajasthan News: किसान महापंचायत ने गांव बंद से किसान राज तक का संकल्प किया पारित, वीडियो में जाने किसान आंदोलन के फैसले की पूरी डिटेल

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जयपुर न्यूज़ डेस्क –  किसान आंदोलन में एक नया मोड़ आया है, जहां किसानों ने लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांगों को मजबूती से रखने का फैसला किया है। 29 जनवरी को देश के 45,537 गांवों में ‘गांव बंद आंदोलन’ का आह्वान किया गया है। यह आंदोलन अहिंसा, सत्य और शांति के मार्ग पर चलते हुए किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य धन आधारित नहीं, बल्कि जन आधारित चुनावी व्यवस्था स्थापित करना है। इसके लिए विधानसभावार पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की टीम तैयार की जाएगी, जो जनमत को जागृत करने का काम करेगी। किसानों का मानना ​​है कि देश की खुशहाली किसानों की खुशहाली से जुड़ी है और इसके लिए ‘खेत को पानी-फसल को दाम’ का नारा दिया गया है।

इस समय सरसों के मूल्य निर्धारण को लेकर एक बड़ा मुद्दा सामने आया है। देश में सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य और कुल उत्पादन का 48% हिस्सा रखने वाले राजस्थान में पिछले साल किसानों को भारी नुकसान हुआ था। न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपए प्रति क्विंटल होने के बावजूद किसानों को मात्र 4,600 रुपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान मिला। इस स्थिति को देखते हुए अब किसान खुद सरसों का मूल्य तय करने की मांग कर रहे हैं। मंगलवार को किसान महापंचायत के आह्वान पर समान विचारधारा वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक जयपुर के किसान भवन में किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की अध्यक्षता में हुई।

जिसमें राजस्थान संयोजक सत्यनारायण सिंह, प्रदेशाध्यक्ष मुसद्दीलाल यादव, महासचिव सुंदरलाल भावरिया, युवा प्रदेशाध्यक्ष रामेश्वर चौधरी, प्रदेश मंत्री बत्ती लाल बैरवा, युवा प्रदेश महासचिव पिंटू यादव एडवोकेट, समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष सवाई सिंह, समाजसेवी प्रो. गोपाल मोदानी, आप पार्टी के पूर्व राजस्थान सचिव देवेंद्र शास्त्री, किसान यूनियन के अध्यक्ष ओम बेनीवाल, मरुधरा किसान यूनियन के डी.के. जैन, एमएसपी विशेषज्ञ मनजिंदर सिंह अटवाल सहित जिला अध्यक्ष, तहसील अध्यक्षों ने भाग लिया। इस बैठक में 29 जनवरी को आयोजित गांव बंद आंदोलन की समीक्षा एवं आगामी रणनीति पर चर्चा की गई। साथ ही फसलों के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य को प्राप्त करने के लिए सरसों को ₹6000 प्रति क्विंटल से कम मूल्य पर नहीं बेचने का संकल्प लेने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। इस दिशा में चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए राजस्थान, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के प्रतिनिधियों के साथ बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया। साथ ही 28 फरवरी तक सभी जिला कलेक्टरों के माध्यम से सरकारों को ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया गया। जिसमें 250 ग्राम से 1 किलोग्राम प्रति क्विंटल तक की जा रही निर्धारित मात्रा से अधिक अवैध तुलाई को रोकने का मुद्दा भी प्रमुखता से रहेगा! जिला स्तर पर जनजागरण के माध्यम से सरसों को ₹6000 प्रति क्विंटल से कम मूल्य पर नहीं बेचने के अभियान को गति दी जाएगी। इस संबंध में ग्राम सभाओं के आयोजन को भी प्राथमिकता दी जाएगी।

इस वर्ष सरसों का बाजार मूल्य 5500 रुपये प्रति क्विंटल तक है जबकि घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5950 रुपये प्रति क्विंटल है। सरसों की आवक शुरू होते ही बाजार भाव 5000 रुपए प्रति क्विंटल से भी नीचे चला जाता है। भारत सरकार खाद्य तेल के आयात पर हर साल लाखों करोड़ रुपए खर्च करती है लेकिन देश के सर्वाधिक उत्पादक किसानों को न्यूनतम घोषित मूल्य भी सुनिश्चित नहीं करवा पाती। इसके अलावा खाद्य तेल के नाम पर पाम ऑयल जैसे अखाद्य पदार्थों पर आयात शुल्क शून्य कर दिया जाता है। सरसों तेल निर्माता उद्योग सरसों के तेल में पाम ऑयल जैसे अखाद्य पदार्थों की मिलावट करते रहते हैं। दुष्परिणाम : सरसों के भाव गिरते रहते हैं। इसके लिए देश के 8 राज्यों के 101 किसानों ने 06 अप्रैल 2023 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिन का उपवास रखकर सरसों सत्याग्रह भी किया था, तब भी सरकार ने कोई सार्थक कार्रवाई नहीं की तो सरसों उत्पादक किसानों ने सर्वसम्मति से 6000 रुपए प्रति क्विंटल से कम दामों पर अपनी सरसों नहीं बेचने का प्रस्ताव पारित किया है।

पहले चरण में यह अवधि 15 मार्च तक रहेगी, 16 मार्च को समीक्षा के बाद आगे की रणनीति घोषित की जाएगी। इस संदर्भ में किसानों की सरसों को गिरवी रखकर केन्द्र व राज्य सरकारों की ओर से वर्ष 2007 से बने कानून के अनुसार घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य का 80 प्रतिशत बिना ब्याज के किसानों को दिलाने की व्यवस्था की जाए ताकि केन्द्र सरकार द्वारा संसद में दिया गया वह वचन पूरा हो सके जिसमें किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर न होना पड़े।

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