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Rajasthan News: सांसारिक मोहमाया छोड़ Barmer के 5 युवक-युवतियों ने लिया संन्यास, किसी ने छोड़ा RAS तो कोई बनना चाहता था टीचर

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बाड़मेर न्यूज़ डेस्क – बाड़मेर में आयोजित जैन धर्म के दीक्षा कार्यक्रम में बाड़मेर के 5 युवक-युवतियां रविवार (16 फरवरी) को संन्यास लेंगे। इन पांच युवकों में से 4 युवतियां और एक युवक सांसारिक जीवन त्यागकर जैन साधुओं के मार्गदर्शन में संन्यास (संयम का मार्ग) अपनाएंगे। बाड़मेर की कुशल वाटिका में आयोजित जैन धर्म के दीक्षा कार्यक्रम में पांचों युवक जैन साधु और साध्वी बनेंगे।

संतों से मिलने के बाद मन में आया संन्यास
इन पांच युवकों में से एक आरती बोथरा ने वर्ष 2018 में संन्यास लेने का निर्णय लिया था, इसके लिए वह जैन साधुओं के साथ 2 साल तक पैदल चली, आरती शिक्षिका बनना चाहती थी। लेकिन, साधु-संतों से मिलने के बाद मन में ऐसा वैराग्य जगा कि उसने संयम के मार्ग के लिए सांसारिक जीवन के सभी सुखों को त्याग दिया। आरती बताती हैं, “मेरे परिवार वाले मुझे संन्यास के रास्ते पर भेजने को तैयार नहीं थे। जब मैंने उनसे इस बारे में बात की तो वे नाराज हो गए। इसके बाद तीन दिन तक घर में विवाद चला तो मैंने तीन दिन तक उपवास रखना शुरू कर दिया, जिसके बाद परिवार वालों को मेरी बात माननी पड़ी और मुझे जैन महात्मा (महाराज सा) के पास भेज दिया, तब मैंने तय किया कि अब मुझे संन्यास लेना ही होगा।” अलसो

मां ने मुझे संन्यास लेने के लिए प्रेरित किया
संन्यास लेने वाली निशा बोथरा कहती हैं, “मैं अपनी मां को ही अपनी प्रेरणा मानती हूं। कोरोना काल में लोगों की मौत ने मुझे डरा दिया था। इस दौरान मुझे जैन साध्वी विद्युत प्रभा के साथ रहने का मौका मिला। मेरी मां चाहती थीं कि मैं दीक्षा ले लूं। जबकि, मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं था। मां की सलाह थी कि कुछ समय गुरुकुल में रहो। अगर आगे ऐसा करने की इच्छा नहीं है तो घर आ जाओ। गुरुकुल जाने के बाद मैं वहां इतनी रम गई कि दोबारा घर आने का मन नहीं किया। इस दौरान मेरे मन में कब संन्यास की भावना जागी, पता ही नहीं चला। इसके बाद मैं करीब 3 साल तक साध्वी के पास रही और उसके बाद मैंने परिवार से संन्यास लेने की अनुमति मांगी तो मां ने हां कर दी। लेकिन, पिता ने एक बार मना कर दिया। लेकिन, मां के समझाने पर पिता भी मान गए। मैंने संन्यास का रास्ता चुना।

” घर में कलह देख अपनाया संन्यास का रास्ता दीक्षा लेने वाले ने बताया, मैं आरएएस बनना चाहती थी। वर्ष 2007 में मैं एक जैन साध्वी से मिलने गई तो वहां का माहौल अच्छा लगा। सोचा कि घर में कितने झगड़े-झंझट होते हैं। लेकिन, संन्यासी जीवन में कितनी शांति होती है। इसी दौरान मन में ठान लिया था कि मुझे संन्यास लेना है। वर्ष 2008 में जैन साध्वी विद्युत प्रभा का चातुर्मास समाप्त हुआ, इस दौरान उनसे मेरा जुड़ाव हुआ और संयम की राह पर चलने के अपने निर्णय के बारे में परिजनों को भी बताया कि मुझे संन्यास लेना है। एक बार तो परिजन चौंक गए और अनुमति देने से मना कर दिया। इस पर मैंने परिजनों से कहा कि अगर आप सहमत हैं और दीक्षा का मुहूर्त निकलवा लेते हैं तो ठीक है। नहीं तो बिना किसी मुहूर्त के ही दीक्षा ले लूंगी। इसके बाद परिजनों ने मुहूर्त निकलवाया, मेरे संन्यास लेने का टर्निंग प्वाइंट एमए करना रहा। नागौर में जैन धर्म में दीक्षा ने 8 महीने पहले अपनी मां को बताया था साक्षी सिंघवी परिवार की इकलौती बेटी हैं, उनके दो भाई हैं। उनका परिवार मूल रूप से बाड़मेर जिले के चोहटन का रहने वाला है, और वर्तमान में सांचौर में रहता है। साक्षी तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। उनके पिता की 2015 में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। साक्षी ने बीएससी की है। उनके पिता चाहते थे कि साक्षी आगे की पढ़ाई करें। लेकिन, कोरोना के कारण उनकी पढ़ाई में अंतराल आ गया और इसके बाद वे बेंगलुरु चली गईं।

कोरोना के दौरान जब वे घर लौटीं तो जैन साध्वी दीप्ति प्रभा के चातुर्मास माह में पहुंचीं। और उनके साथ 10 दिन रहीं। वहीं से उन पर धर्म और संन्यास जीवन की साधना का प्रभाव पड़ा। उनके मन में वैराग्य पैदा हुआ कि सांसारिक जीवन व्यर्थ है। अगर मोक्ष प्राप्त करना है तो धर्म, साधना और ईश्वर की आराधना ही सबसे अच्छा मार्ग है। वे इस चातुर्मास में 10 दिन के लिए गईं थीं। लेकिन, वे वहां करीब डेढ़ महीने रहीं। 8 महीने पहले उसने अपनी मां से कहा था कि वह संन्यास लेना चाहती है। लेकिन, उसकी मां इसके लिए राजी नहीं हुई, उसने कहा कि संन्यास का रास्ता बहुत कठिन है। लेकिन, किसी तरह मैंने अपनी मां और दोनों भाइयों को मनाया, तब जाकर वे मेरी दीक्षा के लिए राजी हुए।

बी.कॉम की पढ़ाई के बाद अक्षय मालू ने ली दीक्षा
इसी तरह बाड़मेर जिले के बाछड़ाऊ गांव निवासी अक्षय मालू की उम्र महज 27 साल है। बी.कॉम की पढ़ाई के बाद उसने सांसारिक जीवन के सभी सुखों को त्यागकर संन्यास जीवन अपना लिया है। वह रविवार को बाड़मेर के कुशल वाटिका में आयोजित दीक्षा कार्यक्रम में संन्यास लेगा। इस दौरान संन्यास लेने वाले सभी युवाओं के परिवारों ने शादी समारोह जैसा ही आयोजन किया है। वरघोड़ा निकाला जाता है, हल्दी की रस्म निभाई जाती है। संन्यास कार्यक्रम से पहले परिवार में इसी तरह के आयोजन किए जाते हैं। इसके बाद ही संन्यास की प्रक्रिया शुरू होती है।

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Rajasthan E Khabar Webdesk

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