नागौर न्यूज़ डेस्क, नागौर सरकारी अस्पताल में मरीज तो खूब बढ़े पर भर्ती होने के बाद कहां चले गए। अस्पताल का यह राज किसी को समझ नहीं आ रहा। वो तो तब जबकि चिंरजीवी/ मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना के तहत सरकार पूरी तरह सरकारी इलाज को लेकर जागरूकता अभियान चलाती रही। नागौर के जेएलएन/एमसीएच विंग में इस साल मरीजों के बदले मिलने वाले भुगतान ने पूरी सरकारी व्यवस्था को हिला दिया है।सूत्रों के अनुसार यहां पिछले आठ साल में ओपीडी डेढ़ गुनी हो गई, जबकि भर्ती रोगियों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ। ऐसे में पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले इस साल अस्पताल को मिलने वाली राशि घटकर करीब साठ फीसदी रह गई है। यहां आने वाले मरीजों को रैफर के नाम पर कहां भेजा जा रहा है, इस पर संदेह गहरा रहा है। खास बात यह है कि डॉक्टरों के साथ साधन-संसाधन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। हालात इसलिए भी गंभीर हैं कि यहां वही मरीज भर्ती होते हैं, जिन्हें पता है कि यहां उनकी बीमारी का इलाज संभव है। गिने-चुने गंभीर हालत होने पर रैफर हो सकते हैं पर मरीजों के बढ़ने के बाद भी सरकार से मिलने वाला भुगतान एकाएक इतना घट जाना किसी के समझ नहीं आ रहा।
सूत्र बताते हैं कि असल में यहां आकर बीच में चले जाने वाले मरीज हाइसेंटर/ बड़े अस्पताल जा रहे हैं या किसी निजी अस्पताल की शरण लेते हैं, इसका कोई रिकॉर्ड भी नहीं तलाशता। पहले भी यह मामला उजागर हो चुका कि जेएलएन अस्पताल से दुर्घटना में हुए मामूली घायलों को ही जोधपुर/बीकानेर रैफर किया जाता रहा। इसके पीछे एम्बुलेंस कमीशन/कमाई की बात सामने आ चुकी है। ऐसे में अस्पताल में भर्ती मरीज रैफर किए जाते हैं या खुद ही चले जाते हैं। इसके पीछे की रणनीति ना सिर्फ सरकारी सिस्टम को धता बता रही है, बल्कि आम आदमी को सहज-सुलभ इलाज की योजना का उद्देश्य भी पूरा नहीं होने दे रही।
मरीजों को राहत
सरकारी अस्पताल में बीपीएल का पूरा उपचार फ्री है। निशुल्क योजना के तहत पंजीयन रोगियों का उपचार करने के बाद इनके बनने वाले पैकेज के तहत सरकार अस्पताल को भुगतान देता है ताकि विकास समेत अन्य पर वो खर्च कर सके। भर्ती योजना के तहत पंजीयन मरीजों के उपचार के बदले सरकार उसका भुगतान अस्पताल को देती है। भर्ती मरीजों को जबरन रैफर करने के डॉक्टर्स अथवा अन्य स्टाफ वालों की बात उचित नहीं लगती। नागौर के जेएलएन अस्पताल को तो हमेशा सरकार से मरीजों के उपचार का अच्छा भुगतान मिला है।