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Rajasthan News: राजस्थान में बाघों के जीन परिवर्तन के लिए चल रही बड़ी तैयारी, 3 राज्यों से मंगवाई जाएंगी 9 टाईग्रेस

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अलवर न्यूज़ डेस्क –   अब अलवर के सरिस्का में मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के बाघों की एक पीढ़ी आएगी। अभी यहां की 90% आबादी एक ही बाघिन एसटी-2 की है। अब एनटीसीए की मंजूरी के बाद इन 3 राज्यों से 9 बाघिनों को यहां लाया जाएगा।विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही परिवार के जानवरों में बीमारियां और दूसरी समस्याएं फैलने का खतरा रहता है। ऐसे में ब्रीडिंग में बदलाव करना जरूरी है। विशेषज्ञों का यह भी मानना ​​है कि जैसे इंसान एक ही वंश में शादी नहीं करते, वैसे ही अगर बाघों के वंश में बदलाव किया जाए तो उनकी उम्र भी बढ़ेगी और आने वाली नस्ल ज्यादा ताकतवर होगी। सरिस्का में 43 बाघ और बाघिन हैं। वन मंत्री संजय शर्मा ने बताया कि एनटीसीए से मंजूरी मिल गई है और राज्य सरकारों से भी बातचीत हो गई है।

जीन बदला तो ताकतवर होंगे बाघ
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. दीनदयाल बताते हैं- ब्रीडिंग का मतलब वंश में पीढ़ी का बढ़ना है। सरल शब्दों में कहें तो यह वैसा ही है जैसा इंसानों में होता है। जैसे एक ही गोत्र में विवाह करना सही नहीं माना जाता। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी बताए जाते हैं। अलग गोत्र में विवाह करने से परिवार के इतिहास में जो बीमारी है उसके रुकने के चांस ज्यादा होते हैं। अब बाघों की बात करें तो उदाहरण के लिए अलवर सरिस्का में बाघिन एसटी-2 ही एकमात्र परिवार है। इसका मतलब है कि एसटी 2 से पैदा हुए शावक से सरिस्का में दूसरे शावक पैदा हुए हैं। जो इसका प्रजनित परिवार है। अगर हम यहां दूसरी जगहों से बाघिन नहीं लाएंगे तो एक ही परिवार आगे बढ़ेगा। जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी बीमारी या कमजोरी आने का डर है। इसलिए जीन में बदलाव की जरूरत है।

जंगल का नियम है कि मजबूत ही बचता है
विशेषज्ञ डॉ. दीनदयाल कहते हैं- जब दूसरे राज्यों से बाघिन यहां लाई जाएंगी तो जीन में बदलाव होगा। इसका मतलब है कि नए शावक मजबूत और स्वस्थ पैदा होंगे। जिनकी उम्र भी लंबी होगी। एक ही तरह के प्रजनन में धीरे-धीरे जीवनकाल कम होता जाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी कई तरह की बीमारियां आने का डर बना रहता है। बाहरी जानवरों के आने से जीन बदल जाते हैं। जो बेहतर है। यही वजह है कि यहां जीन बदलने की जरूरत है। डॉ. दीनदयाल कहते हैं- प्रकृति का नियम है कि श्रेष्ठ-बलवान ही लंबे समय तक जीवित रहते हैं। कमजोर जंगल में लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकते। ऐसे में जीन बदलने से ही बेहतर प्रगति संभव होगी। आने वाली पीढ़ी मजबूत पैदा होगी।

पिंजरे में बंद बाघ लंबे होते हैं
डीएफओ अभिमन्यु सरन ने कहा- बाघ की औसत आयु 17 से 18 वर्ष होती है। वहीं पिंजरे में बंद बाघ की औसत आयु 20 से 22 वर्ष मानी जाती है। खुले में घूमने में संघर्ष अधिक होता है। बाघिन 3 से 4 वर्ष की आयु में शावकों को जन्म देना शुरू कर देती है और अधिकतम 14 वर्ष तक शावकों को जन्म देती है। एक बाघिन एक बार में अधिकतम 5 शावक देती है। सरिस्का में एसटी 22 और एसटी 12 में 4-4 शावक हैं। वन विभाग के अनुसार, ऐसे में यदि जीन में बदलाव होता है तो बाघ अधिक मजबूत पैदा होंगे। बचने की संभावना बढ़ सकती है। शिकार भी आसानी से उपलब्ध हो सकेगा।

एनटीसीए की अनुमति मिल गई है: वन मंत्री
वन राज्य मंत्री ने कहा कि यहां मादा बाघों की जरूरत है। हमने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड सरकार से बात की है। भारत सरकार और एनटीसीए की अनुमति मिल गई है। केके उपाध्याय यहां प्रयास कर रहे हैं। जल्द ही नई बाघिनें आएंगी। इससे हमारे बाघों के जीन में बदलाव आएगा और बाघों का कुनबा भी बढ़ेगा। इन बाघिनों को विषधारी, सरिस्का और मुकुंदरा हिल्स में छोड़ा जाएगा। पीसीसीएफ पीके उपाध्याय का कहना है कि सरकार के स्तर पर बाघिनों को लाने की प्रक्रिया चल रही है। पूरी मंजूरी मिलते ही बाघिनों को प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर भेजा जाएगा। 2 और रिजर्व को

मंजूरी मिल गई है, अब बाघ आना बाकी है
आपको बता दें कि राजस्थान में कुल 6 टाइगर रिजर्व हैं। इनमें से धौलपुर-करौली और कुंभलगढ़ को एनटीसीए से अनुमति मिल गई है। लेकिन, यहां बाघों को शिफ्ट नहीं किया गया है। ऐसे में 4 टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा बाघ और बाघिन की संख्या रणथंभौर में है। जिनकी संख्या 77 है। सरिस्का में 42, रामगढ़-विषधारी में 4 और मुकुंदरा में 3 बाघ हैं।कुंभलगढ़ अब राजस्थान का छठा टाइगर रिजर्व होगा। अगस्त 2023 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। इसके बाद प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए 10 लोगों की एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। पिछले हफ्ते समिति ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को दे दी है। इसके लिए 5 जिलों को शामिल किया गया है। रिजर्व का कुल क्षेत्रफल करीब 1397 वर्ग किमी होगा।

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Rajasthan E Khabar Webdesk

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