बीकानेर न्यूज़ डेस्क , बीकानेर स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू) ने राज्य वृक्ष खेजड़ी की सांगरी को भौगोलिक संकेत (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन- जीआई) टैग देने के लिए चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री कार्यालय में आवेदन किया है। जीआई टैग मिलने से सांगरी को दुनिया में राजस्थान के उत्पाद के रूप में पहचान तो मिलेगी ही। साथ ही इसका निर्यात होने से उत्पादक किसानों और ग्रामीणों को दो गुणा तक दाम भी मिलने लगेंगे।कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि सांगरी को जीआई टैग के आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है। बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. सुजीत कुमार यादव के नेतृत्व में कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने खेजड़ी की सांगरी से जुड़े करीब 700 पेज के डॉक्यूमेंट प्रस्तुत किए हैं। अब चेन्नई कार्यालय की जो भी जिज्ञासा होगी, उसका जवाब भी एसकेआरएयू देगा।
जीआई टैग मिलेगा तो तीन बड़े फायदे
बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. यादव ने बताया कि राजस्थान में खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग मिला तो तीन बड़े फायदे होंगे। बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन यानी खेजड़ी के पेड़ को संरक्षित किया जा सकेगा। सांगरी को वैश्विक पहचान मिलेगी और इसके प्रोडक्ट्स का निर्यात होगा। डब्ल्यूटीओ नॉर्म्स के अनुसार प्रीमियम प्राइस मिलेगा। यानी अब अगर सांगरी यदि 1000-1500 रुपए प्रति किलो के भाव पर निर्यात हो रही है तो जीआई टैग के बाद दोगुणी कीमत मिलने लगेगी। उन्होंने बताया कोलायत के गोविंदसर गांव के किसानों की एक सोसायटी है, जो खेजड़ी उत्पाद बेचती हैं। सोसायटी का रजिस्ट्रेशन करवाया गया है। कृषि विश्वविद्यालय ने सोसायटी के माध्यम से जीआई टैग का आवेदन किया है।
यह है जीआई टैग
बौद्धिक संपदा संरक्षण का बड़ा टूल भौगोलिक संकेत ( जीआई) हैं। चेन्नई स्थित कार्यालय की ओर से इसका रजिस्ट्रेशन किया जाता है। भारत में अब तक करीब 600 उत्पादों को जीआई मिल चुका है। इसमें कृषि उत्पाद करीब 200 हैं।